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Friday, December 7, 2018

Discuss the origin and original home of the Satavahanas and trace in brief their history upto Vasisthiputra Pulumavi.

Discuss the origin and original home of the Satavahanas and trace in brief their history upto Vasisthiputra Pulumavi.
अथवा सातवाहन कौन थे? गौतमी पुत्र शतकर्णि के उनके इतिहास का उल्लेख कीजिए।


Who were the Satavahanas ? Trace their history upto Gautami putra Satakarni.
अथवा

गौतमी पुत्र शतकर्णि के शासनकाल का संक्षिप्त विवरण दीजिए। Give brief account of the reign of Gautamiputra Satakarni.

अथवा गौतमी पुत्र शतकर्णि की उपलब्धियों का मूल्याकंन कीजिए। Estimate the achievements of Gautamiputra Satakarni.


धार्मिक नीति- नासिक अभिलेखों में उल्लेख मिलता है कि गौतमी पुत्र ने अपने राज्य में ब्राह्मण धर्म का पुनरूत्थान किया। उसने न केवल वैदिक अनुष्ठानों को स्वीकार करके उन्हें प्रधानता ही नहीं दी अपितु ब्राह्मण धर्म के लिए जो तत्व घातक थे, उनके उन्मूलन का भी प्रयत्न किया। बौद्ध धर्म के प्रभाव और विदेशियों के सम्पर्क के कारण ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र इन चारों वर्गों में परस्पर जो वर्ण संकरता उत्पन्न हो गयी थी । उसको गौतमी पुत्र शतकणि ने दूर किया । गौतमी पुत्र विद्वान् तथा धर्म शास्त्रों का पण्डित भी था।


गौतमी पुत्र शतकर्णि का मूल्यांकन गौतमी पुत्र शतकर्णि सातवाहन वंश के सभी शासकों में सबसे अधिक प्रसिद्धि प्राप्त एवं प्रतापी शासक था। उसका व्यक्तित्व अत्यन्त आकर्षक एवं प्रभावशाली था । वह शरीर से हष्ट-पुष्ट तथा देखने में अत्यन्त सुन्दर था, उसने लगभग 31 वर्ष के शासन काल में सातवाहन वंश को गौरव के शिखर पर पहुँचाया । उसने अपने पराक्रम और सैन्य शक्ति से कन्नड़ प्रान्त से लेकर उत्तर में मालवा तक अपना राज्य विस्तारित कर लिया। उसके साम्राज्य में मालवा, बरार, वैजयन्ती का नगर और महाराष्ट्र के बहुत से भाग सम्मिलित थे ।


गौतमी पुत्र शतकर्णि विजेता होने के अतिरिक्त एक प्रजा का शुभ चिन्तक और दानी और उदार सम्राट था । वह अपनी पूजा को अपनी सन्तान के समान समझता था । वह अपनी प्रजा के दु:ख को अपना दु:ख दर्द मानता था। वह हमेशा इसी बात का प्रयास करता रहता था कि उसकी प्रजा हर प्रकार से सुखी और समृद्ध रहे। वह उदारवादी प्रकृति का था गौतमी पुत्र ब्राह्मणों, गरीबों एवं अभावग्रस्तों की आर्थिक मदद करता था। उसने ब्राह्मण धर्म की पुर्नप्रतिष्ठा की, उसने जाति व्यवस्था में वर्ण संकीर्णता को रोकने का हर सम्भव प्रयास किया । 


उसकी माता ने बड़े गर्व के साथ अपने पुत्र के लिए कहा था “वह शकों, यवनों व पल्लवों का नाश करने वाला तथा चतुर्वर्णीय संकटों को रोकने वाला है” उसने अपनी प्रजा पर करों का अधिक भार नहीं डाला और अपराधियों के साथ सुधारात्मक रूख अपनाया, कुछ इतिहासकार उसे विक्रमादित्य बताते हैं जो भारतीय इतिहास का एक विख्यात सम्राट हुआ है। परन्तु उपलब्ध तथ्यों से इस कथन की पुष्टि नहीं होती।


अनेक इतिहासकारों का मत है कि उपनी मृत्यु से पूर्व गौतमी पुत्र को शकों के हाथों परास्त होना पड़ा। और उसके राज्य का बहुत-सा भाग जो उसने क्षहरातों से जीता था उसके हाथ से निकल गया। | वाशिष्ठी पुत्र पुलूमावी- गौतमी पुत्र शतकर्णि के पश्चात् लगभग 13 ई. में उसका पुत्र वाशिष्ठीपुत्र पुलूमावी द्वितीय सिंहासन पर बैठा। और उसो लगभग 165 ई. तक शासन किया अर्थात् उसको शासनकाल लगभग 29 वर्ष रहा वाशिष्ठ पुत्र पुलूमावी ने भी अपने पिता के पदचिन्हों पर चल कर साम्राज्य को सुदृढ़ बनाया अपनी पिता की नीतियों पर चलकर प्रजा के हितार्थ कार्य किये । वाशिष्ठी पुत्र पुलूमावी के पश्चात् लगभग 165 ई. में शिव श्री शतकर्णि सम्राट बना और उसने भी 171 ई. तक शसन किया इसके बाद शिवस्कन्द शासन बना।


इसके बाद 175 ई. में सातवाहन वंश का अन्तिम महान् सम्राट यज्ञश्री शतकर्णि गद्दी पर बैठा उसने 29 वर्ष तक गौरवशाली शासन किया। यज्ञश्री की मृत्यु के पश्चात् उसके उत्तराधिकारी कायर और अयोग्य निकले। इस प्रकार सातवाहन शासन छिन्न-भिन्न हो गया। पुलूमावी तृतीय सातवाहन वंश का अन्तिम नरेश था। उसकी मृत्यु के साथ ही 227 ई. में सातवाहन साम्राज्य का भी अन्त हो गया । वह कौन-कौन से कारण रहे जिन्होंने सातवाहन वंश का अन्त हुआ । इन कारणों के बारे में किसी निश्चित कारण पर नहीं पहुँचा जा सकता। लेकिन फिर भी इस कुल के अन्त के मुख्य कारण इस प्रकार है

(1) सातवाहनों की शक्ति निरन्तर नष्ट होती गई।
(2) सातवाहनों के अन्तिम सम्राट यज्ञश्री के उत्तराधिकारी बिल्कुल अयोग्य और कमजोर सिद्ध हुए।
(3) सातवाहनों के अन्तिम सम्राटों के काल में नये वंशों ने अपनी शक्ति को सुदृढ़ किया।

भारत के पश्चिमी प्रदेशों में अमीर प्रबल हो गये। और जब उन्होंने महाराष्ट्र पर अधिकार कर लिया तो सातवाहनों को गहरा अघात पहुँचा । इसी प्रकार दक्षिणी भारत में इक्ष्वाकु और पल्हों ने अपनी शक्ति का विस्तार कर लिया। उन्होंने सातवाहनों के खिलाफ विद्रोह करके स्वतंत्र राज्यों की स्थापना कर ली। इन सभी ताकतों के उत्कर्ष से सातवाहनों की सत्ता का अन्त हो गया।

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